Gorakhpur : गोरखपुर में संपत्ति विवाद में मां और बेटे ने जहर खाकर खुदकुशी कर दी। बड़े बेटे से छोटे बेटे के लिए रुपये मांगने के विवाद पर मां और छोटे बेटे ने जहर खाया था। बड़े बेटे ने मां के खाते से रकम निकाल ली थी। जिसको लेकर विवाद हो रहा था।
गोरखनाथ इलाके के जन प्रिय बिहार कॉलोनी में संपत्ति विवाद में मां और बेटे ने जहर खा लिया।
Gorakhpur : गोरखपुर के गोरखनाथ इलाके के जन प्रिय बिहार कॉलोनी में संपत्ति विवाद में मां और बेटे ने जहर खा लिया। गंभीर हालत में दोनों को जिला अस्पताल लाया गया। डॉक्टरों ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया है, जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। घटना मंगलवार देर रात 11.30 बजे की है।
जनप्रिय बिहार के मकान को 69 लाख में बेच दिया। रकम को मां और बड़े बेटे के संयुक्त खाते में रखा गया था।
Gorakhpur : जनप्रिय बिहार इलाके के एलआईजी 100 में सरोज देवी (55) अपने बड़े बेटे श्रीश राव और छोटे बेटे मनीष राव (28) के साथ रहती थी। कुछ माह पहले उन्होंने जनप्रिय बिहार के मकान को 69 लाख में बेच दिया। रकम को मां और बड़े बेटे के संयुक्त खाते में रखा गया था।
बड़े बेटे ने चुपके से खाते को एकला करवाने के साथ रकम निकाल कर अलग जगह मकान खरीद लिया।
Gorakhpur : मोहल्ले वालों के अनुसार, बड़े बेटे ने चुपके से खाते को एकला करवाने के साथ रकम निकाल कर अलग जगह मकान खरीद लिया। इसकी जानकारी होने पर मां नाराज हुई तो वह 10 नंबर को पत्नी के साथ ससुराल में जाकर रहने लगा। इस बीच कई बार मां ने छोटे बेटे के लिए रुपये की मांग की, लेकिन, बड़े बेटे ने रुपये देने से इनकार कर दिया।
श्रीश के व्यवहार से आहत मां और बेटे ने मंगलवार देर रात जहर खा लिया।
Gorakhpur : मंगलवार को भी मां बेटे ने श्रीश को फोन कर रुपये मांगे, लेकिन उसने पैसे देने से मना कर दिया। आरोप है की श्रीश के व्यवहार से आहत मां और बेटे ने मंगलवार देर रात जहर खा लिया। जानकारी मिलने के बाद लोगों दोनों को सबसे पहले जिला अस्पताल लेकर पहुंचे। वहां से रेफर करने के बाद मेडिकल कॉलेज ले जाया गया।
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Gorakhpur : करीब 11:30 बजे के आसपास उन्होंने दम तोड़ दिया और डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। घटना की सूचना मिलने के बाद गोरखनाथ पुलिस में शव को कब्जे में ले लिया है।
बेचे गए अपने मकान में ही किराएदार बनकर रह गए थे दोनों
Gorakhpur : करीब 6 महीने पहले जब सरोज देवी ने अपना मकान बेचा था तो खरीदने वाले ने उन्हें रहने की व्यवस्था ना होने तक उसी घर में रहने की अनुमति दे दी थी। लिहाजा वह पिछले 6 माह से अपने ही मकान में किराएदार बनकर रह रहे थे। वहीं छोटा बेटा मनीष गोडधोइया नाले के पास गाड़ी धोने की दुकान चलाता था।